आज मेरा दिल किसी भी काम में नहीं लग रहा था। कभी कभी काम बोझ लगने लगता है। उसे न करने के लिए हम नये नये कारण ढूंढते हैं। पर अनमने मन से कोई काम कैसे कर सकता है। आॅफिस की फाइल को बंद कर, बालकनी में आ गई।
बालकनी में मुझे कुछ गूटरगू सुनाई दी, देखा तो एक कबूतर का जोड़ा अपनी ही मस्ती में था, वो दोनों कभी उड़ते, कभी अपनी चोंच में चोंच डाल कर अपने इश्क में डूब रहे थे। कितना अच्छा लगता है ना प्यार , सही में प्यार के बिना जीवन अधूरा है, प्यार से जीवन कितना बदल जाता है।
उन दोनों के प्यार को देख मुझे मेरे वो भी याद आ गये। उन दोनों के प्यार में अपना प्यार देखने लगी। प्यार कितनी सुन्दर, सुखद अनुभूति है। आदमी सब कुछ भूल जाता है। मैं बड़े ध्यान से दोनों के प्यार की नादानियां देख रही थी। उनके साथ कभी मुस्कराती तो कभी भावनाओं में बह जाती।
प्यार होते ही मन में उत्साह उम्मीद उमंग, वात्सल्य, आकांक्षाएं सब बढ़ जाती है। अच्छा लगता है जब कोई इन्सान आप से नज़र मिला कर कहता है, हमें तुम से बहुत प्यार है। उनके हाथ का स्पर्श रूह को कंपकंपा देता है, सुखद अनुभूति का अहसास करा हमें रोमांचित कर देता है।
तभी देखती हूं,अरे ये क्या हुआ..... कबूतर कहा गया। अरे वो तो बालकनी के सामने लगे पेड़ के पास बिजली के तारों के बीच आ घायल हो गया। मैं चाहती थी कि उसके पास जाऊं उसको सहलाऊ, उसकी रक्षा करू, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मादा कबुतर अपने आप को रोक नहीं पाई और वो कभी इधर तो कभी उधर उड़ती। पंख फड़फड़ा कर अपने प्यार को इस तरह दम तोड़ते हुए बहुत दुखी हो रही थी।
ये शायद मुझे कुछ देर पहले करना था तो शायद उसकी जान बच जाती। कभी कभी रिश्तों की डोर मजबूत करने में हम बहुत देर कर देते हैं, तब तक वो रिश्ते मौत की कगार पर पहुंच खत्म होने लग जाते हैं। प्यार को खोना कितना असहनीय होता है। मैं उन्हें भी तो जाने से रोक सकती थी ना पर कहा रोक पाई। किसी के जाने के बाद दिल में कितना तड़पता है, उसको खो देते के बाद उसकी अहमियत समझ में आती है, तो आंखों से अश्क अब रूकते हैं।
जब वो मुझे छोड़ कर गया, दिल ने चाहा, फूट-फूट कर रोऊं। पर नहीं रो सकी। अपने आप को उस समय बहुत छोटा समझ रही थी। आज मेरी आंखों जो आंसुओं से भरी हुई हैं उसमें सबसे हल्की चीज़ तैर रही थी, वो थी अहंकार। मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रही थी। कुछ लोग आये और उस कबुतर को लेकर चले गए। मादा कबुतर चुपचाप पेड़ की छांव में जाकर बैठ गई। मुझे अहसास हुआ कि वो अश्क पलकों पर नहीं गिराना चाहती थी। शायद वो भी मेरी तरह उससे बहुत प्यार करती थी। मेरे आंखों में भी सामंजस्य स्थापित नहीं हो रहा था। कभी वो रोना चाहती थी, कभी नहीं। अपने प्यार के बिना जीवन वो कैसे जीयेंगी।
मैं भी तो जी रही हूं, पर बिछडने की वेदना का मैं वर्णन ही नहीं कर सकती। कभी लगता उसकी वेदना ज्यादा है या मेरी वेदना। प्यार में किसी को खो देना और सबके सामने खुद को मजबूत बनाने की कोशिश करना, दोनों ही कष्टकारी होता है।
मैं जिससे बेपनाह मोहब्बत करती हूं क्या मैं उसके भाग्य में हूं या नहीं हूं। क्या मैं उसके प्यार को पाये बिना ही जीवन खत्म कर दूंगी। नहीं - नहीं मैं तो अपनी मोहब्बत की बांहों के साये में डुबकर वादियों में महकना चाहती हूं। मैं उसकी बांहों का स्पर्श चाहती हूं। हां हां हूं मैं थोड़ी खुदगर्ज, पर क्या करूं, बहुत मोहब्बत करती हूं उनसे। क्षणिक सुख भी जीवन में आनंद भर देता है.....हे ना।.......
तभी आॅफिस में कहीं से किसी के मोबाइल पर रिंगटोन बजी और उनकी यादों से खो बाहर आई, अब दिल बहुत हल्का और अहंकार से बहुत दूर चला गया था। मैंने अपने नन्हे नन्हे पंख जो फड़फड़ा रहे थे, उन्हें धीमें से समेट लिया। और गाने की ये बिंदास पंक्तियां..... सुन.... दिल.....
ये दिल और उनकी निगाहों के साये,
हमें बहुत रूलाते है बाहों के साए।
और मैं........बस....सब भूल गयी।
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