क्रिसमस की सुबह एक अलग ही रोमांच लेकर आती थी. हफ्तों पहले से इंतजार रहता था कि इस बार क्या उपहार मिलेगा. क्रिसमस की रात नींद जैसे पंख लगा कर सांता के साथ ही उड़ जाता था. पर मॉ ने कहा था अगर बच्चे जल्दी नही सोते तो सांता उन्हें उपहार नहीं देता. इस डर से रजाई मे सिर घुसाकर मिटमिटाती आँखों से सांता का इंतजार करते थे. पर न जाने कब बेईमान नींद आ जाती और सुबह मिलता मेरा मनपसंद उपहार. हर साल सांता को देखने का अरमान मन मे ही रह जाता. पर बच्चे तो ठहरे बच्चे उपहार मिलने के कारण सांता को न देख पाने का दुःख कम हो जाता था. मुझे तो अपना उपहार मिल जाता पर बहुत दुःख होता था कि मॉ , पापा को तो सांता ने कुछ नहीं दिया. मॉ से पुछती, " मॉ क्या सांता आप लोगों को प्यार नहीं करते?" क्योंकि बाल बुद्धि तो यही थी कि सांता जिससे प्यार करते है उन्हें ही उपहार मिलता है. मॉ ने कहा," हमे भी प्यार करते है बेटा, पर वो उपहार बच्चे और बूढ़ों को ही देते है."
यही प्रश्न आज क्रिसमस का उपहार मिलने के बाद मेरे बेटे ने किया. और अनायास ही मॉ की कही बात मैने अपने बेटे को कह दी. पर मै सोचने लगी कि हम अपने बच्चों के तो सांता बन गये पर माता पिता के सांता कब बनेंगे.
जब हमे जरूरत थी तब हमेशा वो हमारे साथ रहे. आज उन्हें हमारी जरूरत हैं. मेरे सांता तो मेरे माता ,पिता ही है जिन्होने मेरे बिना कहे ही मेरे मन की हर बात पूरी की .आज हम उन्हें प्यार, मान-सम्मान का उपहार दे सकते है. दिन मे एक बार फोन करके हाल चाल पुछना ही उनके लिए हमारी तरफ से उपहार है.
अपने माता पिता को प्यार तो हम सब करते है पर ये जताना भी उतना ही जरूरी है. कितने भी बीज़ी हो दिन मे एक बार फोन जरूर किजिए. ये तो बताइए कि आप अपने सांता को कितना प्यार करते है.
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