मै शिखा कौशिक उच्च शिक्षा प्राप्त पढ़ी लिखी, खुलें विचार रखने वाली। हर मां बाप का सपना होता है उसकी बेटी के हाथ पीले करें। मेरे मां बाप ने तलाश की एक वर की जो मुझे जिन्दगी में खुशियां दे सके। मेरी भावनाओं की कद्र कर सके।
मेरे पापा मम्मी ने बड़े अरमानों से मेरी डोली सजाई और मुझे अपने ससुराल विदा किया। मैं अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने अपने साजन के घर आ गई। मन में उत्साह उम्मीद उमंग लिए। पर ये क्या हुआ, पहली ही रात सुहागरात के दिन मेरी सास ने सफेद कपड़ा दिया और मुझे वर्जिनिटी टेस्ट देना पड़ा। मैं वर्जिन हूं कि नहीं इसका प्रमाण मुझे देना पड़ा।
मेरी सास ने यहां तक ही नहीं, जब मैं हनीमून के लिए जाने लगी, तब भी सफेद कपड़ा दिया और आदेश दिया कि सैक्स के बाद मुझे ये कपड़ा आकर दिखाना। मैं हैरान थी, उनके इस व्यवहार से। मैं एक खुलें विचारों वाली थी। मस्त मौला थी। ऐसी बातें कभी सोची भी नहीं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश गयी।
पर लोगों की मानसिकता, एक औरत की शादी हो जाती है तो पढ़ाई-लिखाई कोई अहमियत नहीं रखती उसे एक साधारण औरत की तरह ही माना जाता है। आखिर क्यों? क्यो उसके वजूद को ठेस पहुंचाई जाती है।
मैं मां बाप की इज्जत की खातिर चुप रही और सब कुछ सहती रही। अब तो सैक्सूयल अब्यूज के साथ मुझे मानसिक अत्याचार प्रताड़ना का शिकार भी में होने लगी। सास ससुर के अनुसार ही सैक्स होता है, सास ने इतना ही नहीं किया, बल्कि वो मेरी पेंटी तक चैक करती की मैं पीरियड में हुई की नहीं।
मैं चुपचाप सब कुछ सहन कर रही थी और किसी को बोलती भी तो क्या बोलती। शर्म और संस्कारों की वजह से मैं बोल पाई पाई।
सास ससुर के व्यवहार से परेशान हो मैंने नौकरी कर ली। पहली तनख्वाह आते ही सास ससुर ने मेरी सैलैरी ले ली और मना किया तो पति ने हाथ उठाया। मैं रोने लगी पर मेरी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं था।
मैं हिम्मत कर ससुराल छोड़ पीहर चली आई। मां बाप को सब बताया। पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया। अपने अधिकार के लिए वुमन सेल में रिपोर्ट दर्ज कराई। पर पुलिस वालों के सवालों से मन विचलित हो उठा। पुलिस वाले मुझ पर हंसते। मैं बहुत घबरा गई और डिप्रेशन में आ गई। नौकरी पर भी ध्यान नहीं दे पाईं और नौकरी भी हाथों से निकल गई। अब तो और ज्यादा डिप्रेशन में आ गई। लगता आत्महत्या कर लूं।
मैंने तलाक़ लेने के लिए केस दर्ज कराया पर आथिर्क स्थिति से कमजोर होने से केस खुद लड़ने का फैसला किया। वैसे ही मैं ससुराल वालों के सवालों से, वुमन सेल और पुलिस वालों के व्यवहार से परेशान हो गयी थी।
मुझे कहीं से भी कोई न्याय नहीं मिल रहा था। सब अपनी अपनी राय देते।। मैं हार चुकी थी।
एक दिन समन्दर के किनारे पर खड़े होकर मैं ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। लगा गगन की ऊंचाइयों को छूना चाहती थी, जिंदगी में कुछ करना चाहती थी पर रिश्तों के कड़वापन में सब ज़हर हों गया। मैं अपनी जिंदगी समाप्त करना चाहती थी। पर तभी किसी ने कहा मुझे,मत घबराओ में हूं ना। और मेरे आंसुओं को पोंछने का प्रयास करते हुए मेरा हाथ पकड़ लिया।
ये कौन है? अरे ये तो मनोवैज्ञानिक डॉक्टर है, हमारे शहर की प्रसिद्ध। वो मुझे अपने पास लें गई। मुझे विश्वास दिलाया और मुझे मनोबल स्टडी जाईन करवाई। उनकी वजह से मेरी जिंदगी की राह ही बदल गई।
जीवन की राह कठिन है पर मैं अब नहीं घबराऊँगी हर परिस्थिति का सामना करूंगी और जिंदगी की हर जंग जीत लूंगी।
#stopdomesticviolence
COMMENT