आज एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मेरे निमंत्रण पत्र आया। मैं कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थी। जल्दी से सारा काम निपटा कर कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंच गई। कार्यक्रम में शहर के कई सम्मानित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। आज का विषय था,"महिला सशक्तिकरण"।
सभी ने अपने अंदाज से अपने वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में शामिल होने शर्मा जी भी आये थे। वहीं जो हमारे शहर के गणमान्य नागरिक थे।
उन को देख कर लगा कितने तरिके से रहते हैं, एकदम स्मार्ट बन कर। बाल भी व्यवस्थित, कपड़े भी व्यवस्थित। और एक मेरे पतिदेव उन्हें तो रहने का सलीका ही नहीं है। बस अपनी ही मस्ती में जीते हैं। शादी के पहले तो ये हीरो बन कर रहते थे। घर गृहस्थी के चक्कर में उलझ कर सब भूल गए।
और एक ये शर्मा जी हैं, इनसे भी उम्र में इतने बड़े, और अभी भी हीरो बन कर रहते हैं। मेरी नज़र तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रही थी।
घर आईं, मैंने इनसे आते ही बोला,"आप तो आजकल कैसे रहने लगे, देखो शर्मा जी को, इतने व्यस्त होते हुए भी कितने सलीके से रहते हैं।"...."बस तुम्हें तो दूसरे मर्द ही अच्छे लगते हैं।"........
"नहीं ऐसा कुछ नहीं है, ओके बाबा रहने दो,"और काव्या सो गई। निखिल काव्या का पति अपनी पत्नी और परिवार की जरूरत पूरी करने में दिन भर मेहनत करता था। सीधा साधा इंसान।
काव्या आज किसी काम से गुड़गांव जा रही थी। काम होने पर सोचा शर्मा जी ने उस दिन इतना आग्रह किया था, घर पर आने का तो, घर पास में ही है, तो मिलने चली जाती हूं।
घर जाकर काव्या ने डोर बेल बजाई, तभी एक महिला ने दरवाजा खोला। मैंने कहा,"शर्मा जी हैं ।"उस महिला ने गर्दन हिला कर स्वीकृति दी। और मुझे सोफे पर बैठने के लिए इशारा किया। मैं सोफे पर बैठ ड्राइंग रूम को देखने लगी। पूरा घर व्यवस्थित था।
तभी शर्मा जी आ गये।"और कैसी हैं आप।" मैंने अभिवादन करते हुए कहा,"मैं इधर किसी काम से आईं थी तो सोचा आप से मिलती हुई जाऊं। तो मिलने आ गई।" ..........."और आप की पत्नी कहा है,"।"हां बुलाता हूं उसको"।
मैं मन ही मन सोच रहीं थी,इनकी पत्नी तो बहुत सुन्दर होगी और इनके जैसे ही रहती होगी। तभी वो महिला पानी की गिलास से आईं और मेरे हाथों में थमाया, और कुछ क्षण के लिए मुझसे बात करने के लिए रुकना चा रही थी। तभी शर्मा जी बोले,"सुजाता, ऐसे मुंह लेकर क्या खड़ी हो जाओ मेडम के लिए चाय बना कर लाओ।"तभी दीवार पर टंगी तस्वीर पर मेरी नजर गई। मुझे क्षण भर भी सोचने में देर नहीं लगी,की ये महिला तो शर्मा जी की ही पत्नी है। मन में कैसे कैसे विचार आने लगे।
"अच्छा शर्मा जी चलती हूं, और कभी आकर चाय पीऊंगी।"
सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए मन में यही विचार आया कि मेरा निखिल तो लाखों में एक है। महिला सशक्तिकरण की बात पर लम्बे लम्बे भाषण नहीं देता पर मुझे कितनी स्वतंत्रता दे रखी है। मुझे तो कोई नहीं चाहिए, सिर्फ निखिल और निखिल जैसे इंसान का साथ चाहिए।
और जल्दी से आटो रिक्शा ले अपने घर के लिए रवाना हो गई।
Image Source: theindiansociety
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